भोपाल। हर साल भादो मास में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। जो इस साल 26 अगस्त को मनाया जा रहा है। ये पर्व श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए बेहद खास होता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। साथ ही उनकी कथाएं सुनते हैं। इस अवसर पर हम आपको श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की कथा बताएंगे। (Krishna birth story)
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था श्रीकृष्ण का जन्म
जन्माष्टमी की कथा के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। भगवान कृष्ण के जन्म के समय जेल के द्वार खुद-ब-खुद खुल गए थे और पहरा देने वाले पहरेदार गहरी नींद में सो गए थे। दरअसल भगवान कृष्ण का जन्म कंस की कारागार में हुआ था। कंस भगवान कृष्ण की मां देवकी के भाई थे। (Krishna birth story)
कंस को सुनाई दी आकाशवाणी
कंस अपनी बहन से बेहद प्रेम करता था, लेकिन एक दिन उसे अचानक से आकाशवाणी द्वारा भविष्यवाणी सुनाई दी कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। तब उसने अपनी बहन को मारने की सोची, लेकिन उनके पति ने जब कंस को ये वचन दिया कि वह अपनी सारी संतान कंस को सौप देंगे। तब कंस ने देवकी माता के प्राण तो छोड़ दिए, लेकिन उन दोनों को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। (Krishna birth story)
श्रीकृष्ण के जन्म के समय कंस ने बढ़ा दिया था पहरा
देवकी ने कारागार में कई बच्चों को जन्म दिया। कंस ने एक-एक करके सभी को मौत के घाट उतार दिया। जब देवकी के आठवें बच्चे के होने का समय था तब कंस ने कारागार पर पहरा और भी ज्यादा बढ़ा दिया। लेकिन जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होने को था वैसे ही कारागार में दिव्य प्रकाश फैल गया। तब आकाशवाणी ने श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव को निर्देश दिया कि वो बालकृष्ण को गोकुलधाम में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और वहां से उनकी नवजात कन्या को लाकर कंस को सौंप दें। आकाशवाणी के बाद वासुदेव की हथकड़ियां अपने आप खुल गईं और कारागार पर पहरा दे रहे सभी पहरेदार भी गहरी नींद में सो गए। (Krishna birth story)
बालकृष्ण को गोकुलधाम छोड़ आए थे वासुदेव
तब वासुदेव जी ने बालकृष्ण को एक टोकरी में रखा और उन्हें लेकर गोकुलधाम की ओर चल दिए। रास्ते में यमुना नदी को पार करते समय नदी का जल अचानक से उफान पर आ गया, लेकिन श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श करते ही यमुना शांत हो गई। इस तरह से वासुदेव जी ने बालकृष्ण को नंद बाबा और यशोदा के पास पहुंचा दिया और वहां से कन्या को मथुरा लाकर कंस को सौंप दिया। कंस ने जैसे ही उस कन्या को मारने की कोशिश की वैसे ही वह आकाश में उड़ गई और आकाशवाणी हुई कि कंस तुझे मारने वाला बालक तो इस दुनिया में जन्म ले चुका है। अंततः श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर सभी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।