बस्तर। आपने अभी तक सिलसिलेबार झीरम कांड की सच्‍चाई को जाना। अब हम उस रहस्‍य से पर्दाफाश भी करेंगे, जिसे घटना का गहरा नाता है। दरअसल, झीरम घाटी में नक्सलियों के हमले में कांग्रेस नेताओं की एक पीढ़ी समाप्त हो गई। इस घटना में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, बस्तर टाइगर कहे जाने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, कांग्रेसी नेता उदय मुदलियार समेत कुल 32 लोगों की मौत हो गई थी। हर साल छत्‍तीसगढ़ कांग्रेस 25 मई को काला दिवस के रुप में मानती है। घटना के 11 साल बीत जाने के बाद भी मृतकों के परिजनों को न्याय नहीं मिला।

-सरेंडर करने के बाद भी नहीं छोड़ा
-100 मीटर दूरी पर ले जाकर मारा
-महेंद्र कर्मा की नृशंस हत्‍या
-24 कांग्रेसियों को उतारा मौत के घाट

नक्सलियों ने काफिले पर ताबड़तोड़ फायरिंग के बाद कांग्रेस के सभी नेताओं से सरेंडर करने को कहा। धमाकों से घबराए काफिले में मौजूद कांग्रेस नेता और महेंद्र कर्मा ने नक्सलियों के सामने अपने दोनों हाथों को उठाकर सरेंडर कर दिया। महेंद्र कर्मा ने अपने साथियों को नक्सलियों से छोड़ देने की अपील भी की। लेकिन नक्सलियों सनकी दिमाग और रक्‍त रंजित साजिश के आगे उनकी एक नहीं चली। मेन रोड से करीब 100 मीटर की दूरी पर ले जाकर नक्सलियों ने उनके शरीर पर 70 बार धारदार हथियार से वार कर नृशंस हत्या कर दी।

ये खूनी खेल यहीं नहीं रूका। महेंद्र कर्मा की हत्या करने के बाद नक्सलियों ने कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बड़े बेटे की भी गोली मारकर हत्या कर दी। बीएसटीवी से बातचीत करते हुए प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि नंदकुमार पटेल ने उनके बड़े बेटे दिनेश पटेल को रिहा करने की नक्सलियों से गुहार भी लगाई। लेकिन नक्सलियों ने उनके बेटे को भी मौत के घाट उतार दिया। झीरम घाटी नक्सली हमले में 24 कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत जवान और आम आदमी भी मारे गए थे।

-बड़ी एजेंसी…अधूरी जांच
-खौफ को खत्‍म करने का दावा
-सुरक्षा के कड़े इंतजाम
-अब तक नहीं मिला न्‍याय

झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले के बाद सुरक्षा के लिहाज से जगदलपुर आने वाले मार्ग में घटनास्थल से करीब 200 मीटर की दूरी पर CRPF कैम्प स्थापित किया गया। वहीं सुकमा जाने वाले मार्ग में भी घटनास्थल से करीब 300 मीटर की दूरी पर भी सीआरपीएफ कैंप स्थापित किया गया। ये सब इसलिए किया गया कि नक्‍सलियों की दहशत खत्‍म हो सके। झीरम घाटी की तस्वीर भी बदली और यहां नेशनल हाईवे का चौड़ीकरण भी किया। सड़क पर सोलर स्ट्रीट लाइट भी लगाई। 11 सालों में भले ही झीरम घाटी की कुछ हद तक तस्वीर बदली हो। लेकिन इस घटना की जांच कर रही एनआईए, छत्तीसगढ़ न्यायिक जांच आयोग और एसआईटी की जांच आज भी अधूरी है।

इस मामले में बड़े-बड़े दावे किए गए। सुरक्षा बढ़ाई गई। सियासत भी हुई। लेकिन हमले में मारे गए लोगों के परिजन आज भी न्‍याय की आस में सरकार की तरफ देख रहे हैं। इस घटना के बाद मौके पर सरकार ने 22 लाख रुपए की लागत से शहीद स्मारक जरूर बनाया। इस स्‍मारक पर हर बरसी पर कांग्रेसी नेता और शहीद के परिजन फूल चढ़ाने पहुंचते हैं और घटना को याद कर सिहर जाते हैं। दूसरी तरफ नेताओं के साथ दरभा के रहने वाले 5 लोगों की मौत भी हुई थी। मृतक में मनोज जोशी और राजकुमार शामिल हैं। 11 साल बीत जाने के बाद भी मनोज जोशी की मां रोते बिलखते कहती हैं कि हमें आज तक इंसाफ नहीं मिला है। उनकी पीड़ी सुन हर किसी का कलेजा मुंह को आ जाता है।

इंसाफ और सियासत
इंसाफ की बात होती है, तो अक्‍सर सियासत होने लगती है। सब आश्‍वासन देते हैं। लेकिन 11 साल के बाद भी आज भी पीड़ित परिवार को न्‍याय की गुहार है। इन्‍हें उम्‍मीद है कि कभी न कभी तो उन्‍हें उनके अनसुलझे सवालों का जबाव मिलेगा।

झीरम की बदलती हुई तस्वीर
झीरम की तस्‍वीर कुछ हद तक बदली है। आपने सबसे पहले सिलसिलेबार इस हत्‍याकांड के हर एक पहलू को जाना। अब आगे हम आपको झीरम घटी की उस सच्‍चाई को बतायेंगे। जो झीरम की बदलती हुई तस्‍वीर को बयां करती है। सुबह से शुरू की गई इस कहानी का आखिरी पड़ाव रात तक पहुंचा। रात के समय भी बीएसटीवी ने ग्राउंड जीरों से हर एक सच को आप तक पहुंचाया।

-कितनी बदली झीरम की तस्‍वीर ?
-रात के फेर में सुने रिपोर्टर की जुबानी
-ग्राउंड जीरो से एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट
-दहशत, खौफ…और डर का माहौल

राष्ट्रीय राज्यमार्ग में बसे झीरम गांव में सबसे पहले हमारे संवाददाता ने राहगीरों से बातचीत की। यह भी रास्‍ता है, जिस पर घटना को अंजाम दिया गया। इस हत्‍याकांड को 11 साल बीत जाने के बावजूद भी लोगों के मन में डर का माहौल है।

आज भी डरते हैं लोग
आपने देखा की आज भी इस इलाके से गुजरते वक्त लोगों को डर लगता है। झीरम की तस्‍वीर तो विकास और सुरक्षा के लिहाज से कुछ हद तक बदली है। यहां की सड़क चौड़ी हुई। सुरक्षा बलों के कैम्प भी खुल गए। इसके बावजूद लोगों के मन में किस बात का डर है। झीरम के गांव युवकों ने बताया झीरम गांव घटना से बहुत प्रसिद्ध हुआ। लेकिन विकास के नाम से आज भी हम परेशान हैं। आज भी बुनियादी सुविधाओं का आभाव है। वह घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि आज भी डर बना हुआ है। शाम होते ही लोग अपने घरों से नहीं निकलते। बाहर के गांव और शहर वाले हमारे नाम और गांव से डरते हैं।

झीरम गांव में देर रात तक हमारी टीम डटी रही। हम ये जानने की कोशिश करते रहे कि आखिर विकास और सुरक्षा की तस्‍वीर के साथ झीरम में क्‍या-क्‍या बदला। लेकिन जो तस्‍वीरें हमारे सामने आई, वो चौंकाने वाली थी। लोगों का आरोप है कि आज भी उन्‍हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली। बदहाली के आंसू बहा रहा झीरम गांव घटना के 11 साल बाद भी पानी के लिए तरस रहा है। स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा के नाम पर यहां कुछ नहीं है। शहीद स्‍मारक पर लाखों रुपए खर्च किए गए। लेकिन घटनास्‍थल से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर बसे झीरम गांव की तस्‍वीर जस के तस है।

झीरम के सच को हमने आप तक पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन आज भी कई ऐसे अनसुलझे रहस्‍य हैं, जिनके खुलासे का सब इंतजार कर रहे हैं। पीड़ितों को न्‍याय की गुहार है, तो झीरम को अपनी तस्‍वीर बदलने की दरकार। बस्‍तर से हमारे संवादाता के शंकर की इस खास पेशकश में बस इतना ही।