बस्तर। आज 25 मई है। वह दिन जो हर साल अपने साथ एक नरसंहार की याद वापस लेकर आता है।हम बात कर रहे हैं, देश के सबसे बड़े आंतरिक हमलाें में शामिल झीरम हत्या कांड की। इस घटना को 11 साल हो चुके हैं। इस घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया था। 25 मई 2013 की शाम को हुए इस हमले में 32 लोग की हत्‍या हुई थी। हमले में जान गंवाने वाले अधिकांश छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता थे। सालों से इस मामले की जांच चल रही है, लेकिन अभी तक पूरा सच सामने नहीं आ सका। इसी सच को जानने के लिए ग्राउंड जीरो पर हमारे जबांज रिपोर्ट के शंकर पहुंचे। जिस जगह घटना को अंजाम दिया गया। वहां की हर एक तस्‍वीर 11 साल बाद फिर कैमरे में कैद की। इस घटना को भले ही 11 साल हो चुके हो, लेकिन यहां की हर एक तस्‍वीरें आज भी चीख चीखकर उस दिन हुई घटना की सच्चाई को बयां कर रही है…रिपोर्टर की जुबानी…झीरमकांड की कहानी

तारीख -25 मई 2013
दिन- शनिवार
समय –05 बजे
स्‍थान- झीरम घाटी

घटना वाले दिन झीरम घाटी में एक माओवादी हमला की खबर आई। ऐसे हमले रूटिन थे। लेकिन जैसे ही इस खबर का अपडेट गया, सबके होश उड़ गए। पता चला कि इस माओवादी हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा और नंद कुमार पटेल सहित कई लोग मारे गए। इसके बाद जैसे ही खबर अपडेट होना शुरू हुई और शाम ढलते ही ये जानकारी सामनेआई कि हमले में कुल 32 लोग मारे गए हैं। ये देश के इतिहास का सबसे बड़ा नक्सल हमला था। सबसे पहले नक्‍सलियों ने काफिले में आगे चल रही बोलेरो वाहन को ब्‍लास्‍ट से उड़ाया।

दरअसल, सुकमा जिले में एक सभा के बाद सभी कांग्रेसी नेता सुरक्षा दस्ते के साथ अगले पड़ाव के लिए निकले थे। काफिले में सबसे आगे नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा सुरक्षा कर्मियों के साथ आगे बढ़ रहे थे। पीछे की गाड़ी में मलकीत सिंह गैदू और बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा सहित कुछ अन्य नेता सवार थे। इस गाड़ी के पीछे बस्तर के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी उदय मुदलियार कुछ अन्य नेताओं के साथ चल रहे थे। इस काफिले में सबसे पीछे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल एनएसयूआई के दो नेताओं देवेन्द्र यादव और निखिल कुमार के साथ थे। इस पूरे काफिले में करीब 50 लोग शामिल थे। जैसे ही काफिला घने जंगलों से घिरी झीरम घाटी पर पहुंचा। वैसे ही काफिले में सबसे आगे चल रही बोलेरो गाड़ी को नक्सलियों ने पहला निशाना बनाया।

इस पूरी घटना के सच को जानने के लिए सबसे पहले इस कहानी की कड़ियां को जोड़ा गया। हमारे संवाददाता ने उस ब्‍लास्‍ट वाले स्‍थान की उन तस्‍वीरों को भी हम तक पहुंचाया। जिसे देखकर आप ये सिलसिलेबार जान पायेंगे कि उस दिन आखिर हुआ क्‍या था। BSTV के साथ मौके पर पहुंचे एक मृतक के भाई ने घटना की पूरी जानकारी दी। जिस बुलेरो को सबसे पहले निशाना बनाया गया। उसमें उनके भाई की मौत हो गई थी। आप सुनिए उस युवक की जुबानी, जिसके भाई ने इस नक्‍सली हमले में अपनी जान गंवाई थी।

-मौत का तांडव
-नक्सलियों का प्‍लान
-अंधाधुंध गोलीबारी
-32 लोगों की मौत
-नहीं सुलझी गुत्‍थी

इस घटना में पीसीसी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की मौके पर ही मौत हो गई। मौके पर मौत का तांडव जारी था। एक के बाद एक कर काफिले की गाड़ियां इस गोलीबारी की जद में आती रहीं। घाटी के दोनों ओर ऊंची पहाड़ियों से सैकड़ों नक्सली अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। करीब एक घंटे तक गोलीबारी हुई। जब मौके पर सुरक्षा बल के जवान पहुंचे, तब तक दूर-दूर तक सिर्फ लाशें बिखरी पड़ी थीं। हमारे संवाददाता के शंकर ने 11 साल बाद जब मौके पर जाकर रिपोर्टिंग शुरू की, तो कैमरे की जद में वो मंजर भी कैद हुआ, जिसके देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे।

-पेड़ गिराकर रास्‍ता किया बंद
-नहीं मिला बैकअप सपोर्ट
-साजिश में सफल रहे नक्‍सली

शाम को 4 बजे काफिला जैसे ही झीरम घाटी से गुजरा, तभी नक्सलियों ने पेड़ गिराकर रास्ता रोक दिया। इससे पहले कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही पेड़ों के पीछे छिपे 200 से ज्यादा नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद नक्सलियों ने एक-एक गाड़ी को चेक किया। जिन लोगों की सांसें चल रहीं थी उन्हें फिर से गोली मारी। बीएसटीवी की टीम उस जगह पर भी पहुंची, जहां पर महेंद्र कर्मा समेत दूसरे कांग्रेस नेताओं को अपहरण कर ले जाया गया था।

-घात लगाकर हमला
-संभलने का नहीं दिया मौका
-हमले में 200 नक्‍सलियों का हाथ
-किसी को भी नहीं छोड़ा
-घायलों को चुन-चुन कर मारा

झीरम की इस अनसुलझी कहानी को लेकर हर कोई आज भी यही सोचता है कि कब इस कहानी का पटाक्षेप होगा। इस इलाके से गुजरने वाले राहगीरो की नजर जब झीरम शहीदी स्मारक पर पडती है तो लोगों में डर पैदा हो जाता है। यहां से गुजरने वाले ओड़िसा के लोगों से हमारी सहयोगी ने बातचीत की।

इस इलाके में सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। इतने बड़े कांड के बावजूद भी यहां के लोग बताते हैं कि आज भी पीने के पानी से लेकर स्वास्थ सुविधाओं को लेकर आम जनता तरस रही है।

-झीरम कांड के अनसुलझे रहस्‍य
-पीड़ितों को कब मिलेगा न्‍याय?
-गुनहगारों को कब मिलेगी सजा ?
-इस साजिश के पीछे किसका हाथ?
-कई सवाल…जबाव का है इंतजार

11 साल बाद भी इस हत्याकांड का रहस्य अनसुलझा है। आज तक झीरम कांड के गुनहगारों तक जांच एजेंसियां नहीं पहुंच पाई। इस हत्याकांड के कई रहस्य अब भी अनसुलझे हैं। और पता नहीं कब तक झीरम घाटी के पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा।

-झीरम घाटी से के. शंकर की स्‍पेशल रिपोर्ट

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