भोपाल। साल 2018 में अक्षय कुमार की एक फिल्म (World Olympic Day) रिलीज हुई थी जिसका नाम था ‘गोल्ड’। चक दे इंडिया के बाद हॉकी पर बनी दूसरी बेहतरीन फिल्म। इसकी कहानी आजादी के बाद भारत को ओलंपिक में मिले पहले गोल्ड मेडल पर बेस्ड है। वास्तविक घटना को लेकर बड़े लेवल पर फिक्शनलाइज्ड की गई इस फिल्म में अक्षय कुमार के किरदार का नाम था ‘तपन दास’। लेकिन, क्या आप जानते हैं ‘तपन दास’ का किरदार किससे प्रेरित है?
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भारत को पहला गोल्ड दिलाने वाले कप्तान थे किशनलाल
अक्षय का किरदार प्रेरित था अंग्रेजों से मिली आजादी के बाद पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल (World Olympic Day) जीतनी वाली भारतीय हॉकी टीम के कप्तान किशनलाल से। ‘दादा’ के नाम से मशहूर किशनलाल आजादी से पहले ब्रिटिश इंडिया हॉकी टीम से खेलते थे। उनका सपना था कि वो और उनकी टीम पुरस्कार तो जीते ब्रिटिशों के लिए नहीं बल्कि इंडिया के लिए। जीत के बाद झंडा तो लहराए पर ‘यूनियन जैक’ नहीं बल्कि ‘तिरंगा’। राष्ट्रगान तो गाया जाए लेकिन ‘गॉड सेव द किंग’ नहीं बल्कि ‘जन गन मन’।
किशनलाल का यह सपना पूरा हुआ आजादी के एक साल बाद साल 1948 में हुए लंदन ओलंपिक में। फाइनल में भारत का सामना हुआ उस पर 200 साल हुकूमत करने वाले ब्रिटेन से। भारत ने इस मैच में अंग्रेजों की टीम को उनके ही घर में 4-1 के बड़े अंतर से हराया। इसके बाद पहली दफा अंग्रेजों के घर में तिरंगा शान से लहराया और भारत के राष्ट्रगान पर अंग्रेज नतमस्तक नजर आए।
मध्यप्रदेश के रहने वाले थे किशनलाल
जिन किशनलाल के शानदार नेतृत्व में अनुभवहीन भारतीय हॉकी टीम ने अपना पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल जीता था वह मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू के रहने वाले थे। खेल में उनके इस अभूतपूर्व योगदान के लिए भारतीय टीम ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। वह दो दशक तक इंडियन रेलवे टीम के कोच रहे। उनकी कोचिंग में रेलवे 14बार चैंपियन बना।
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लेकिन अफसोस की बात है कि आज न लोग उन्हें जानते हैं और न हीं सरकार ने ऐसा कोई कदम उठाया जिससे लोग उनके बारे में जानकर गौरवान्वित हो सकें। जिसकी चतुर रणनीति से भारत पहली दफा खेल के महाकुंभ में चैंपियन बना, उसका पुश्तैनी घर आज जर्जर अवस्था में है। उनके नाम पर उनके गृह नगर में न तो कोई रोड है और न ही कोई चौराहा। कोई यदि उस महान खिलाड़ी के घर को भी देखने आने चाहे तो वह आसानी से न पहुंच पाए।
ऐसा नहीं है कि अभी तक की सरकारों ने कोई घोषणाएं नहीं की, लेकिन वो घोषणाएं समय के साथ ठंडे बस्ते में समा गईं। जमीन पर कुछ काम होते नजर नहीं आया। क्या देश और मध्यप्रदेश का नाम दुनियाभर में रोशन करने वाले के नाम पर सलाना एक बड़ा टूर्नामेंट आयोजित नहीं होना चाहिए? क्या उनके नाम पर कोई खेल सम्मान नहीं मिलना चाहिए? आज हालत यह है कि देश को पहला गोल्ड दिलाने वाले कप्तान आज अपने घर में ही अनजान बने हुए हैं।
जर्मनी में उनके नाम पर रोड
दुनियाभर में भारत का नाम रोशन करने वाले किशनलाल के नाम पर भले ही उनके देश में कुछ न हो लेकिन जर्मनी में उनके नाम पर एक सड़क है। उनके बेटे ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में इसकी पुष्टि की थी। उन्होंने बताया था कि यह सम्मान उन्हें रोम ओलंपिक से पहले जर्मनी टीम को मार्गदर्शन देने के लिए दिया गया था।
‘विश्व ओलंपिक दिवस’ के मौके पर ये लेख लिखने का हमारा मकसद इस महान खिलाड़ी के बारे में देश को और खासकर मध्यप्रदेश को बताना था। जिससे लोग यह जान सकें कि किशनलाल ने देश के लिए कितना कुछ किया है। साथ ही खुद से यह सवाल कर सकें कि क्या हम उन्हें वो सम्मान दे सके, जिसके वो हकदार थे?