भोपाल। आज मध्य प्रदेश के ऐसे नेता का जन्मदिन है, जिसके सियासी सितारे बचपन से ही बुलंद रहे। कभी छात्र जीवन से राजनीति में कदम रखने वाला ये शख्स देखते ही देखते मुख्यधारा की राजनीति का माहिर खिलाड़ी बन गया। पार्टी ने एक बार भरोसा जताया तो फिर अपनी कार्यशैली और लगन के चलते जिले ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भी नाम कमाया । ऐसे नेता के जन्मदिन पर उसके जीवन से जुड़े उतार-चढ़ाव के बारे में बात करेंगे। (Prahlad Singh Patel)

गोटेगांव के किसान परिवार में जन्म

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में मूलम सिंह पटेल खेती किसानी करते थे। जिनके घर में 28 जून 1960 को एक बच्चे ने जन्म लिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। 20 साल बाद सन 1980 जब वही बच्चा जबलपुर गवर्नमेंट साइंस कॉलेज के छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष चुना गया। तो इस बच्चे की लोगों में एक पहचान बनी। उन दिनों में छात्र संघ चुनाव बड़े प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव हुआ करते थे। यहीं से प्रह्लाद सिंह पटेल (Prahlad Singh Patel) की राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।

बुलंदी पर सियासी सितारे

साल 1982 में जब प्रह्लाद पटेल का छात्र संघ अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हुआ तो उनको भारतीय जनता युवा मोर्चा का जिलाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। उन दिनों प्रह्लाद सिंह पटेल (Prahlad Singh Patel) के सियासी सितारे इस कदर बुलंदियों पर थे कि 1986 से 1990 तक पार्टी ने उनको युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव से लेकर कई अहम पदों पर काम करने का मौका दिया। प्रह्लाद पटेल की कुशल कार्यशैली को देखकर पार्टी ने उन पर एक बार फिर भरोसा जताया।

जीत के साथ हार का स्वाद भी चखा

ये भरोसा इतना बड़ा था कि पार्टी ने 1989 में उन्हें सिवनी लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बना दिया। पार्टी का ये भरोसा प्रह्लाद पटेल के लिए एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। इस चुनाव में प्रह्लाद पटेल कांग्रेस के गार्गी शंकर मिश्रा को पराजित कर सांसद बन गए। 1990 में उनको खाद्य और नागरिक आपूर्ति और सलाहकार समिति,कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया। 1989 में बीजेपी ने प्रह्लाद सिंह पटेल पर फिर से भरोसा जताया और उनको सिवनी लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया तो एक बार फिर पटेल संसद पहुंच गए। परंतु ये सिलसिला 1998 में उस समय टूट गया, जब प्रह्लाद पटेल सिवनी से चुनाव हार गए। उसके बाद 1999 में बालाघाट से सांसद चुनकर वो संसद पहुंचने में कामयाब रहे। 2004 में वो छिंदवाड़ा से चुनाव हार गए, लेकिन 2014 और 2019 में वो दमोह से सांसद बने।

ऐसे प्रधानमंत्री…जो कभी सफल कहलाए, तो कभी असफल होने का आरोप लगा !

सीट बदलने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं

प्रह्लाद सिंह पटेल ने पहला चुनाव सिवनी लोकसभा से लड़ा। पूरे 9 साल सिवनी लोकसभा की राजनीति करने के बाद जब सन 1998 में चुनाव हार गए तो सिवनी लोकसभा क्षेत्र छोड़ दिया। सन 1999 में बालाघाट से चुनाव लड़ा और एक नई पॉलीटिकल पारी की शुरुआत की, लेकिन बालाघाट में भी नहीं रुके। सन 2004 में छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने चले गए। हार गए तो 10 साल तक चुनावी राजनीति से बाहर रहे। उनकी ये सीट बदलकर चुनाव लड़ने की शैली के चलते उन पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो जिस सीट से हार जाते हैं फिर दोबारा उस क्षेत्र में राजनीति नहीं करते।

प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं

मौजूदा वक्त में प्रह्लाद सिंह पटेल मध्य प्रदेश की नरसिंहपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। साथ ही वो प्रदेश की मोहन यादव सरकार में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।