कांकेर: भीषण गर्मी में प्यास बुझाना लोगों के लिए बड़ी परेशानी साबित हो रही है।knew the pain of tribals ऐसा ही हाल कांकेर का है। जहां लोगों को मौसम की दो तरफा मार झेलनी पड़ रही है। सूरज आग उगल रहा है और इस भीषण गर्मी में लोगों को पानी भी नसीब नहीं हो रहा। कांकेर के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग धीमा जहर पीने को मजबूर हैं।knew the pain of tribals
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भीषण गर्मी में ज़हरीला पानी पीने को मजबूर आदिवासी
छत्तीसगढ़ में इन दिनों भीषण गर्मी का दौर जारी है। ऐसे में प्रदेश के कई इलाकों में जलसंकट की स्थिति गहरा गई है। लोगों को गले की प्यास बुझाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।यही हाल कांकेर के मौलीपारा गांव का है। जहां दूरदराज इलाकों में लोग पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
पानी के नाम पर धीमा जहर पी रहे हैं। ये ज़हर पीना इन 85 आदिवासी लोगों के लिए कोई लत नहीं बल्कि एक मजबूरी है। इसके लिए जंगली रास्तों से डेढ़ से दो किलोमीटर का सफर तय करते हैं। इसे पीने से लोग बीमार पड़ रहे हैं। जिससे लोगों को उल्टी, दस्त की शिकायत भी सामने आ चुकी है। जिनकी सुध ना ही जनप्रतिनिधि लेते है और ना ही प्रशासन। पीने को साफ पानी नहीं है।
प्रशासन ने इन लोगों के लिए बोर खनन करवाया है।लेकिन इस हैंडपम्प से लाल पानी(लौहयुक्त पानी) आता है। जिसे पी नहीं सकते। जरूरतों की अन्य चीजों के लिए भी इस्तेमाल करें तो इस हैंडपंप से केवल 6 से 7 बाल्टी ही सही तरीके से पानी मिलता है। knew the pain of tribals
नल-जल योजना मौलीपारा गांव में ‘धड़ाम’!
सरकार नल जल योजना लाकर लोगों के घरों तक पीने का साफ पानी पहुंचा रही है। जिससे कि पानी के लिए उन्हें भटकना ना पड़े। लेकिन धरातल में यह योजना दम तोड़ती हुई नजर आ रही है। जिसका उदाहरण है यह गांव। जहां के ग्रामीण पानी के लिए जंगल में डेढ़ से दो किलोमीटर का सफर तय करते है।
पानी लेने के लिए अकेले नहीं जाते, 3-4 या उससे अधिक की संख्या में जाते हैं। यहां जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है। यह अपने साथ कुछ धारदार हथियार भी लेकर जाते हैं। तब इन लोगों को पानी मिलता है। जिसका उपयोग वो लोग पीने के लिए करते हैं। पहाड़ी जंगली रास्तों से होकर पानी के लिए ग्रामीण आज भी जद्दोजहद कर रहे हैं। knew the pain of tribals
गंदा पानी पीने को मजबूर आदिवासी
जल संकट से जूझते लोगों की समस्या को समझने के लिए BSTV की टीम ग्रामीणों के साथ जंगली रास्तों से पार कर उस झरिया तक पहुंची। जहां का पानी ये आदिवासी ग्रामीण पीते हैं। ये कोई और नही पहाड़ी नालों से रिस रहा पानी था। जिसके आसपास इतनी गंदगी थी कि उसे कोई मुंह ना लगाए। इतना ही नहीं इस पानी में मच्छर-मक्खी-कीड़े आसपास साफ नजर आ रहे थे। बावजूद इसके ये आदिवासी इसी तरह लगातार गंदा पानी पी रहे हैं।
आदिवासी ग्रामीण बताते है कि पीने के पानी के लिए उन्होंने अब तक इसी तरह 10 झरिया बनाए हैं। जो गर्मी के कारण सूख गए हैं। अब सिर्फ यही बचा हुआ है जिससे वो लोग पानी पीते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बमुश्किल मग्गे से बर्तन में पानी आता है। जिससे सभी को एक दिन के पीने का पानी मिल जाता है। इस पानी को पीकर वह बीमार भी हो रहे हैं लेकिन गले की प्यास मजबूरी बन गई है।knew the pain of tribals
भीषण गर्मी की मार लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। ऐसे में प्यास बुझाना लोगों के लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा है…धीमा जहर लोगों की जान पर खतरा बन रहा है।knew the pain of tribals