क्या है मां नर्मदा के अस्तित्व की रोचक कहानी… कैसे महादेव से हुई इनकी उत्पत्ति… मां नर्मदा के दर्शन मात्र से जीवन भर के कट जाते है कलेश…कहां-कहां  से आते हैं नर्मदा भक्त, देखिए पूरी रिपोर्ट…

मंडला, रामकुमार बघेल। कहते है कि मां नर्मदा के दर्शन मात्र से मां अपने भक्तों के कष्टों को हर लेती है। सभी देवों में पूज्यनीय मां नर्मदा, जिनके स्पर्श मात्र से मनुष्य के सभी रोग, दुख, दर्द दूर हो जाते हैं, जो भारत की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। लगभग 1312 किलोमीटर लंबी नर्मदा नदी अमरकंटक से निकलकर गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से होते हुए खंभात की खाड़ी में जा मिलती है। मोक्ष दायिनी मां नर्मदा, जिनके दर्शन मात्र से जीवन के समस्त पाप धुल जाते हैं। सभी देवों में पूजनीय मां नर्मदा, जिनके स्पर्श मात्र से मनुष्य के सभी रोग, दु:ख, दर्द दूर हो जाते हैं। मां नर्मदा अपने उद्गम स्थान अमरकटंक से सीधे प्रवाहित होकर डिंडौरी फिर इसके बाद मंडला पहुंचती है। जहां पर श्रद्धालु श्रद्धा और सुमन की डुबकी लगाते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। यहां नर्मदा तटों पर पूर्णिमा और अमावस्या में लोगों का तांता लगता है।

मंडला त्रिवेणी संगम का एक अनोखा दृश्य भी देखने को मिलता है यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि महाराजपुर के संगम घाट में तीन नदियों का त्रिवेणी संगम है। मां नर्मदा, बंजर और गुप्त रूप में सरस्वती का संगम होता है। यहां तर्पण का अधिक महत्व है जिसके चलते सिवनी, बालाघाट के साथ ही महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ से लोग तर्पण के लिए पहुंचते हैं आज इस धार्मिक स्थल की महत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है। बता दें कि अक्टूबर से मार्च के बीच त्रिवेणी संगम की यात्रा का सबसे अच्छा माना जाता है जब मौसम ठंडा और दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए शांत होता है। हालांकि साल के किसी भी समय त्रिवेणी संगम की यात्रा की जा सकती है, यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि त्रिवेणी संगम हमारे पवित्र ग्रंथों के अनुसार प्रयाग नगरी में सरस्वती, गंगा और यमुना नदियों का मिलन होता है।

मंडला का सहस्रधारा जो कि मंडला से नजदीक ही स्थित है…लेकिन पर्यटन के उद्देश्य से यहां दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं…. बताते तो यह भी हैं कि नर्मदा नदी का जलपान करने के लिए भगवान शंकर स्वयं शिवलिंग के आकार में यहां विराजमान हो गए थे। यहां मां नर्मदा सहस्र धाराओं में विभाजित होकर एक विशाल कुंड में गिरती है।त्रिवेणी संगम में तीन नदियों का समावेश होता है। भक्त बताते हैं कि मंडला नगरी में उतर वाहिनी परिक्रमा भी की जाती है। क्योंकि यहां पर मां का प्रवाह उत्तर की तट से बढ़ जाता है। ये परिक्रमा 22 किलोमीटर की होती है। इस परिक्रमा को करने लिए महाराष्ट्र, गुजरात तमिलनाडु, चेन्नई, मिजोरम, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों से भी नर्मदा भक्त संख्या में पहुंचते हैं।

 

माँ नर्मदा हैं शिव सुता

वेद शास्त्र बताते हैं कि भारत की सात दैविक नदियां हैं…. जिनमें गंगा, यमुना, सिंधु, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और इन्ही में से एक मां नर्मदा, जिन्हें शिव सुता भोलेनाथ की पुत्री कहा जाता है। इन्हीं से उनकी उत्पत्ति हुई है। मां नर्मदा इकलौती ऐसी नदी है….जिस पर पूरा पुराण लिखा हुआ है। इन्ही पर लिखे नर्मदा पुराण के अनुसार, जब महादेव एवं आदिशक्ति मां पार्वती के साथ लोक कल्याण हेतु ऋक्ष पर्वत पर कठोर तप कर रहे थे। जो कि हज़ारों लाखों वर्षो तक चला। इसी कठोर तप के बीच उनके शरीर से पसीने की एक बूंद बहकर निकली। जिसमें पूरा पर्वत तैरने लगा। उन्हीं में से एक मंडला नगरी से भी मां नर्मदा मैया प्रवाहित होकर निकलती है।

हजारों लाखों भक्त रोजाना लगाते हैं जो आस्था की डुबकी

मां नर्मदा का स्वरुप इतना विराट और विहंगम है कि उनके वर्णन के लिए शब्द कम पड़ जाएं। तो मां नर्मदा की महिमा का गुणगान स्वयं ब्रह्मा विष्णु और महेश भी करते हैं, लेकिन यह मां और भक्त का अटूट प्रेम है कि हर सुबह हजारों लाखों की तादाद में श्रद्धालु नर्मदा के तट पर पहुंचते हैं और माँ नर्मदा के जयकारों के साथ ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं सनातन धर्म में यूं तो 33 कोटि देवी देवताओं का वर्णन आता है लेकिन यहां भक्तों की जुबां पर एक ही नाम आता है ‘नर्मदे हर’