भोपाल। एक्टर विक्रांत मैसी की फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ इन दिनों चर्चा में है। गुजरात में साल 2002 में हुए गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों पर आधारित है। फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से ही एक वर्ग जहां निर्माताओं पर गलत फैक्ट्स के साथ फिल्म बनाकर देश का सांप्रदायिक माहौल खराब करने का आरोप लगा रहे हैं। तो वहीं दूसरा वर्ग का कहना है कि फिल्म में वो सच दिखाया गया है जो कई सालों से दबा था। (Godhra Kand)

पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर सत्ता पक्ष के कई बड़े नाम इस फिल्म की तारीफ कर चुके हैं। उनका कहना है कि द साबरमती रिपोर्ट फिल्म के जरिए देश की जनता गोधरा कांड की सच्चाई को जान पाएगी। बीजेपी शासित मध्यप्रदेश में तो इस फिल्म को टैक्स फ्री तक कर दिया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकें। सीएम मोहन यादव ने इसे काला अध्याय बताते हुए कि इसकी सच्चाई लोगों के सामने आना बेहद जरुरी है। (Godhra Kand)

यदि आप इस फिल्म को देखने की प्लानिंग कर हैं तो उससे पहले यह जानना जरुरी है कि गोधरा कांड आखिर क्या था, ये कब हुआ था और उसके बाद क्या हुआ…

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क्या है गोधरा कांड?

साल 2002 के फरवरी महीने की 27 तारीख… यही वो मनहूस दिन था जब गुजरात के गोधरा में 59 लोगों को बेरहमी से जला दिया गया। बिहार के मुजफ्फरपुर से गुजरात के अहमदाबाद तक चलने वाली साबरमती एक्सप्रेस अपने समय पर दिन के करीब 12 बजे गोधरा रेलवे स्टेशन पहुंची। ट्रेन के एस-6 कोच में सैंकड़ों यात्री सवार थे जिनमें वो कारसेवक भी थे जो अयोध्या से वापस लौट रहे थे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रेन के गोधरा स्टेशन से रवाना होने के कुछ ही समय बाद इमरजेंसी चैन खींचकर उसे रोका गया। ट्रेन स्टेशन के पास ही सिग्नल पर खड़ी हो गई। इसके बाद करीब 2 हजार लोग वहां एकत्रित हो गए और उन्होंने ट्रेन पर पत्थरों से हमला कर दिया। लोगों की भीड़ ने ट्रेन के एस-6 डिब्बे पर पेट्रोल डाला और उसमें आग लगा दी। इस अग्निकांड में 59 लोगों की जलकर मौत हो गई।

भड़के दंगे

गोधरा में हुई इस भयावह घटना के एक दिन बाद गुजरात में अहमदाबाद समेत अन्य स्थानों पर दंगे भड़क गए। करीब तीन महीने तक यह खुशहाल राज्य दंगों की आग में जलता रहा। इन सांप्रदायिक दंगो की चपेट में आकर लगभग 1 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी। वहीं करोड़ों की सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा। आजादी के बाद गुजरात दंगे देश की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थे।

जांच के लिए नानावटी-शाह आय़ोग का गठन

गोधरा कांड के समय पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे। इस घटना के कुछ समय बाद ही उन्होंने इसकी जांच के लिए नानावटी- शाह आयोग का गठन किया। इसके सदस्य हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ज जज केजी शाह और जीटी नानावटी थे। आयोग ने सितंबर 2008 में अपनी जांच रिपोर्ट का पहला पार्ट पेश किया, जिसमें गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया। आयोग ने अपनी जांच में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट मंत्रियों समेत कई कई अफसरों को क्लीनचिट दे दी।

साल 2009 में इस आयोग के सदस्य केजी शाह का निधन होने बाद गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज अक्षय मेहता को इसका सदस्य बनाया गया। जिसके बाद इसका नाम नानावटी-मेहता आयोग कर दिया गया। इस आयोग ने साल 2019 में अपनी जांच रिपोर्ट का दूसरा पार्ट पेश किया। जिसमें उन्होंने फिर से इस कांड को सोची-समझी साजिश बताया।

कोर्ट में सुनवाई जारी

ट्रायल कोर्ट ने साल 2011 में 31 लोगों को इस मामले में दोषी ठहराया, जिनमें से 11 को सजा-ए-मौत जबकि बाकी 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। वहीं, 63 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया। इसके 6 साल बाद यानी 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने उन 11 लोगों की मौत की सजा को कम करके उसे आजीवन कारावास में बदल दिया। बाकी की सजा ज्यों की त्यों रखी गई। गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। जिस पर अगले साल 15 जनवरी को सुनवाई होनी है।