भोपाल। आज यानी कि 4 जुलाई को एक ऐसे महापुरुष की पुण्यतिथि है, जिसके भाषण ने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजाया।जिसने समाज के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए। जिसने अपने शिष्यों से कई बार कहा कि उसकी उम्र 40 साल से ज्यादा नहीं है, और फिर 39 साल 5 महीने 24 दिन में समाधि ले ली। हम बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की (Swami Vivekananda) । उनकी 122 वीं पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़े पहलुओं को जानेंगे।
12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्म
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ। जहां उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। जिसके बाद राजस्थान के खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) नाम दिया। विवेकानंद बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। गुरू श्रीराम कृष्ण परमहंस से प्रेरित होकर नरेंद्रनाथ दत्त ने 25 साल की उम्र में ही सांसारिक मोह माया का त्याग कर अपने जीवन को आध्यात्म और हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में लगा दिया। जब वो संन्यासी बन ईश्वर की खोज में निकले। तभी स्वामी विवेकानंद ने पूरे विश्व को हिंदुत्व और आध्यात्म का ज्ञान देते हुए भारत के रंग में रंग दिया।
इस भाषण ने दुनिया में बजाया भारत का डंका
बहुत की कम लोगों को जानकारी होगी कि स्वामी विवेकानंद के नाम एक ऐसी उपलब्धि भी है जिसने भारत का डंका पूरी दुनिया में बजाया। दरअसल, विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने 11 सितंबर 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म संसद में भाषण दिया था। जिसकी शुरुआत उन्होंने “अमेरिकी भाई और बहनों से की थी।” अमेरिका में मेरे भाइयों और बहनों मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को अपनी शरण में रखा है।
‘सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद’
उन्होंने कहा था कि मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं।आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और करोड़ो हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने कहा कि मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार पूरब के देश से फैला है।
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‘मनुष्यों के रास्ते ईश्वर तक ही जाते हैं’
विवेकानंद ने आगे कहा कि मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा कि हम सभी धर्मों को स्वीकार करते हैं। जिस तरह से अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग रास्तों से होकर समुद्र में मिलती हैं। ठीक उसी तरह मनुष्य भी अपनी इच्छा से अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते दिखने नें भले ही अलग लगते हैं लेकिन ये सभी ईश्वर तक ही जाते हैं। जिसके बाद 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद ने समाधि ली थी।(Swami Vivekananda)