श्योपुर। शादी का कार्ड देने के लिए लोग अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। कुछ लोग खुद ही कार्ड बांटते हैं, तो कुछ पोस्ट करते हैं। युवा पीढ़ी तो आजकल वाट्सएप के माध्यम से ही कार्ड भेज देती है, लेकिन मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में एक ऐसा गांव है जहां शादी का न्योता देने के लिए एक अनूठी परंपरा का पालन किया जाता है। (Sheopur News)
ददूनी नाम के इस गांव में लोगों को शादी में आमंत्रित करने के लिए नीम के एक पेड़ पर शादी का कार्ड रख दिया जाता है। जिन लोगों के नाम इस कार्ड में लिखे होते हैं, वह न्योते को स्वीकार कर कार्यक्रम में शामिल होते हैं। (Sheopur News)
गांव में कई साल पुराना पंचों का चबूतरा (अथाई) है, जिस पर नीम का पेड़ लगा है। इस पेड़ पर एक डलिया बनाई गई है। गांव में किसी के यहां शादी होने पर उस घर के सदस्य घर-घर जाकर कार्ड नहीं देते बल्कि उन्हें जिन-जिन को आमंत्रित करना होता है, उनके नाम कार्ड पर लिखकर उसे नीम के पेड़ पर लगी डलिया में रख देते हैं।
वर्षों से चली आ रही परंपरा
यह परंपरा विगत 25 वर्षों से चली आ रही है। जिसकी शुरुआत गांव के दो बुजुर्ग भाइयों जगन्नाथ जाट व रामस्वरूप जाट ने की थी। आमंत्रण देने की इस परंपरा को केवल गांव के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे गांव, कस्बे और शहर के लोग भी फॉलो करते हैं। उनके द्वारा भी नीम के पेड़ पर रखे आमंत्रण कार्ड को गांव वाले स्वीकार करते हैं। अगर किसी को पूरे गांव को निमंत्रण देना है तो पंचमुखिया के नाम के बाद बाल गोपाल परिवार लिख देते हैं ऐसे में पूरा गांव सब परिवार न्योता मान लिया जाता है।
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ऐसे हुई शुरूआत
रामप्रसाद और जगन्नाथ ने बताया कि पहले गांव में जो शादी के कार्ड आया करते थे, उसमें आमंत्रित करने वाला व्यक्ति गांव के किसी एक घर में अन्य घरों का कार्ड दे आता था। जिसके बाद कभी-कभी भूलवश वो कार्ड या तो किसी अन्य घर में चला जाता था। या फिर लोग उसे देना ही भूल जाते थे। ऐसे में शादी की लोगों की शादी की सूचना नहीं मिल पाती थी।
इसी को लेकर हमने 25 वर्ष पूर्व यह निर्णय लिया कि गांव में एक नियत स्थान बनाया जाए जहां पर शादी विवाह या अन्य मांगलिक कार्यक्रमों की सूचना सबको प्राप्त हो जाए इसी को लेकर उन्होंने घर के सामने लगे एक नीम के पेड़ पर एक टोकरी लगा दी जिसमें बह गांव वालों के कार्ड रख दिया करते थे फिर धीरे धीरे सभी गांव बालों को इसका पता चल गया। इसके बाद गांव में जो भी कार्ड आता है उसे नीम के पेड़ पर लगी टोकरी में डाल दिया जाता। आसपास के गांव वाले और दूरदराज से आने वाले भी शादी के निमंत्रण को उसी डलिया में रख दिया करते थे। इससे गांव के लोगों को सूचना मिल जाती है और किसी को भी घर-घर जाकर कार्ड बांटने का काम नहीं रहता।
बुजुर्ग जगन्नाथ ने इस परंपरा को शुरु करने की एक और वजह बताई। उन्होंने कहा कि हमारे गांव में पंचों अथाई या चबूतरा का सम्मान बना रहे इसलिए हमने इस परंपरा को शुरू करने विचार दिया था। गांव में सद्भाव ऐसा है कि लोगों ने इसे स्वीकारा और बीते ढाई दशक से इसका पालन भी कर रहे हैं।