देश मे जहां गर्मियों के समय आज भी कई शहर सूखे की मार झेल रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में बना 1100 साल पुराना ऐतिहासिक किला 21 वीं सदी में अपनी बेहतरीन रेन वॉटर सिस्टम टेक्नोलॉजी के लिए जाना जाता है. बारिश के पानी को सहेजने के लिए आज भी इस किले पर 4 बड़े और लगभग 84 छोटे कुंड मौजूद हैं जिनमें साल भर बारिश के पानी को सहेज कर रखा जाता है. Real Story of Raisen Fort
रेन वॉटर सिस्टम की खासियत
भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर रायसेन शहर के बीच 1500 फिट ऊंची पहाड़ी पर ये किला आज भी मौजूद है इस किले पर जाने के लिए 3 मुख्य रास्ते हैं जिन पर बने विशाल प्रवेश द्वार आपका स्वागत करते हैं. किले के चारों ओर सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लगभग 4 से 5 फिट चौड़ी दीवारें बनी हुई है. किला लगभग 1 किलोमीटर के क्षेत्र मे फैला हुआ है और किले के अंदर दो से तीन मंजिला इमारतें हैं जिनकी छतो से गिरने वाला बारिश का पानी छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से किले के अंदर बनी हुई बावड़ी और तालाबों मे संरक्षित होता है जिसका साल भर उपयोग किया जाता है.
पानी की उपलब्धता के लिए बनाए गए थे 4 बड़े तालाब
रायसेन किले को 10-11 वीं शताब्दी के दौरान राजा ने बनवाया था जिसमें उसके लगभग 15 से 20 हज़ार सैनिक और प्रजा रहा करती थी किले के निर्माण के समय पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए यहां पर चार बड़े तालाब बनाए गए थे और लगभग 84 छोटे कुंड बनाए गए थे इन कुंड को छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से किले की कंधराओं और ईमारतों से गिरने वाले पानी की नालियों से जोड़ा गया था.1500 फीट की ऊंचाई पर होने के बाद भी पानी के लिए राजा को मैदानी क्षेत्रों में उतरने की जरूरत नहीं थी.
वर्तमान जल प्रबंधन को चुनौती देता बरसों पुराना रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
आज रायसेन शहर की आबादी लगभग 45 से 50 हज़ार के करीब है शासन द्वारा लोगों के लिए पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना एक चुनौती साबित हो रहा है, वहीं 1100 साल पुराने इस किले पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम चालू है जो वर्तमान जल प्रबंधन को चुनौती दे रहा है. रायसेन दुर्ग पर आने वाले ज्यादातर पर्यटक इन्हीं कुंड से अपनी प्यास बुझाते हैं जबकि कुछ वर्ष पहले तक रायसेन किले की तलहटी पर बनाए गए उस समय के टांके का पानी शहर में पहुंचाया जाता था आज रायसेन मे लगभग 32 करोड़ रुपए खर्च कर हलाली डैम से पानी लाया जाता है।
जो शहर वासियों की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता. वहीं देखरेख के अभाव में ये प्राचीन जल स्रोत नष्ट होने की कगार पर हैं. 1100 साल पहले बनाई गई इस जल प्रबंधन की व्यवस्था से आज के युवाओं और प्रशासन को सीख लेनी चाहिए.
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‘पानी और अन्न की कमी कभी नहीं बनी किला खाली करने की वजह’
युग युगीन रायसेन पुस्तक के लेखक राजीव लोचन चौबे बताते हैं कि रायसेन दुर्ग पर छठवीं सातवीं शताब्दी की मिली मूर्तियां बताती हैं कि उस समय भी यह दुर्ग विद्यमान था. राजीव लोचन चौबे कहते हैं कि तीन दिन का हमने यहां पर सर्वे किया था जिसमें मिले पुरातत्व साक्ष्य से ये तय होता है कि पहले यहां पर आदिमानव रहा करते थे. उस समय सबसे बड़ी समस्या यह थी कि जब दुश्मन किले पर हमला करने से पहले चारों तरफ घेरा डालते थे ताकि जल औऱ अन्न की व्यवस्था खत्म होने पर लोग बाहर आएं, लेकिन रायसेन किले के लोगों को जल और अन्न के संकट की वजह से कभी किले के बाहर नहीं आना पड़ा.
उस समय किले के निर्माण के दौरान बनाए गए महल के नीचे एक बड़ा वॉटर टैंक हुआ करता था जिसमें बारिश का पानी छत के रास्ते से नीचे आया करता था जो कि साल भर पीने के काम आता था. इसके अलावा वहां 84 टैंक थे और 6 बड़े तालाब थे. राजीव लोचन बताते हैं कि आज के समय को लेकर बात की जाए तो यह बड़ी विडंबना है कि हमने पहाड़ के ऊपर तो जल संरक्षण किया लेकिन जमीन पर नहीं कर पा रहे हैं. पानी का दोहन जरूरत से ज्यादा बढ़ा है सिंचाई पहले सीमित हुआ करती थी जबकि अब बहुत बढ़ गई है। इतना ही नहीं खनन भी बहुत बढ़ गया है जिससे कई बावड़ियों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया.
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पेयजल ग्राउंड वॉटर समय की बड़ी ज़रूरत- डीएम
वहीं इस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में जिला कलेक्टर अरविंद कुमार दुबे बताते हैं कि पेयजल ग्राउंड वॉटर इस समय की बड़ी जरूरत हैं और उसे संजोय रखना उतना ही महत्वपूर्ण है. रायसेन के किले के बारे में जिला कलेक्टर कहते हैं कि उस समय जब किले बनते थे तो उन्हें खाने और पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जाता था उस की इंजीनियरिंग को पानी की पर्याप्त व्यवस्था को ध्यान में रखकर उपयोग किया गया था. जो लोग किले को देखने जाते हैं वो रेन वॉटर सिस्टम को भी देखना पसंद करते हैं.
वर्तमान में जो नए निर्माण हो रहे हैं उसमें बिल्डिंग परमिशन के साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए भी नियम बनाए गए हैं. वर्तमान में प्रदेश के साथ ही रायसेन में भी 44 डिग्री टेंपरेचर है जिससे ग्राउंड वॉटर का जो लेवल है वो काफी नीचे चला गया है, हालांकि प्रशासन औऱ जनप्रतिनिधि पहले से ही इस समस्या का तोड़ निकालने में लगे हुए हैं. इसके लिए शासन ने निर्देश दिए हैं कि रेन वॉटर को हार्वेस्टिंग के माध्यम से जमीन के नीचे पानी पहुंचाएं जिससे इस समस्या से निजात मिल सके।
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