प्रवीण दुबे

एडिटर इन चीफ BSTV

एक शेर है…नाराज नहीं हूँ किसी से, बस दिल थोड़ा सा खफ़ा है..किसी को फ़र्क नहीं पड़ता, यही होता हर दफ़ा है….कमलनाथ के कांग्रेस छोड़कर जाने की ख़बरों का क्या अब पटाक्षेप हो गया…हालांकि सोमवार को दिल्ली में कमलनाथ के समर्थक सज्जन सिंह वर्मा की मीडिया से चर्चा के बाद तो यही आकलन लगाया जा सकता है…तीन दिनों तक सिर्फ यही एक ख़बर मीडिया, सोशल मीडिया में जमकर ट्रेंड करती रही…कयासों अनुमानों की पत्रकारिता चलती रही…दिन दिनांक,स्थान सब कुछ नियत कर दिया गया कि कैसे ज्वाइन करेंगे कमलनाथ भाजपा…उस वक्त न कमलनाथ ने खंडन किया और ना ही भाजपा ने उनके गृह प्रवेश की पुष्टि की…मगर जिस तरह से शब्दों की जलेबियाँ दोनों तरफ से बन रही थीं, उससे पुष्टि के इशारे ज्यादा हो रहे थे, खंडन के बजाय…बहरहाल…कल कांग्रेस के इंचार्ज जनरल सेकेट्री जितेन्द्र सिंह आ रहे हैं …राहुल गांधी की यात्रा की समीक्षा बैठक करने…कमलनाथ की उस बैठक में क्या भूमिका होगी ये कल ही देखेंगे…तो आज बात करेंगे इसी मसले की कि कमलनाथ मसले का जो धुंए का ग़ुबार उठा उसकी आग लगी कहाँ थी…छिंदवाड़ा में, पीसीसी में, भाजपा दफ्तर में या फिर दिल्ली में…अचानक ऐसा क्या हुआ कि कमलनाथ का कुछ घंटों में दो बार ह्रदय परिवर्तन हुआ….क्या उनकी अपनी पार्टी ने मनाया या भाजपा ने स्वागत के वन्दनवार नहीं लगाए…? क्या उनका सिख विरोधी दंगों में शामिल रहने का आरोप भाजपा के मुख्यालय में बैरियर बनकर कमलनाथ के सामने आ गया.. भाजपा में जाने से कमलनाथ को क्या फायदा होता और रुकने से क्या कोई नुकसान संभावित है या यहाँ भी फायदा होगा..? कमलनाथ की नाराज़गी अपनी पार्टी से जिन मसलों को लेकर थी क्या उन सभी को कांग्रेस ने एड्रेस कर लिया ठीक से… बड़ा सवाल जिसका जवाब अनुत्तरित है अब तक वो है कि कमलनाथ ख़ुद रुके हैं या रोके गए हैं…

कमलनाथ जा क्यूँ रहे थे और रुके क्यूँ..?

बीते कई दिनों से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने का मसला अब लटक गया है…मूल ख़बर ये है कि कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुल नाथ दोनों भाजपा में नहीं जा रहे हैं..तकरीबन तीन दिन ड्रामा चला और आज आख़िरकार इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी गई….हालाँकि कहीं नहीं जाने की ये घोषणा भी कमलनाथ ने नहीं की बल्कि उनके विश्वसनीय सज्जन सिंह वर्मा ने की…पहले ठीकरा मीडिया के सर पर फोड़ने की कोशिश हुई…बाद में लगा कि ये चलेगा नहीं तो फिर स्वीकारा गया कि थोड़ी बहुत नाराजगी थी,जो दूर हो गई…दो दिन से कमलनाथ समर्थक इस भाव में थे कि वो चल दिए हैं,वो अब आ रहे हैं,यही सोचकर हम दिल बहला रहे हैं.. अब कहा गया कि कमलनाथ राहुल गांधी की न्याय यात्रा में भी हिस्सा लेंगे और पूरे प्रदेश का दौरा भी करेंगे…सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने उन्हें मना लिया और यदि मना लिया तो क्या भरोसा दिया है..?क्या जीतू पटवारी के बजाय फिर से कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाएगा…? नाराजगी की वजह थी पार्टी में उनकी अतिशय उपेक्षा…वो कम तभी होगी जब उन्हें कोई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी जी जाएगी…तो क्या उसका भी वक्त मुकर्रर कर दिया है कांग्रेस ने..?

क्या भाजपा ने नहीं लगाए वंदनवार ?

सबसे बड़ा सवाल यही कि कमलनाथ के जल्दी जल्दी हुए इन दोनों ह्रदय परिवर्तन की वज़ह क्या है..? लगभग 50 साल से वे जिस पार्टी के साथ निष्ठा से जुड़े रहे. इंदिरा गांधी उन्हें तीसरा बेटा कहती रहीं उन्हें छोड़ने का मन क्यूँ बनाया..और बनाया बहुत जोर-शोर से और वापस हुए उसी रास्ते..ऐसा क्या हुआ क्या भाजपा ने ही गेट पूरी तरह से नहीं खोले..केन्द्रीय भाजपा के स्तर पर तो कोई कन्फ्यूजन नहीं था लेकिन लोकल भाजपा तो समझ नहीं पा रही है कि कल तक उनके लिए उसने जो सॉफ्ट अंदाज़ रखा था, वही लहज़ा आगे भी रखना है या फिर अब उनके प्रति आक्रामक हुआ जाए… भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने तो संकेतों में ही सही लेकिन इस निर्णय का स्वागत कर लिया था…जबकि प्रदेश सरकार के मंत्री और कैलाश विजयवर्गीय बड़ी दिलेरी से ये कहते रहे कि उनकी कोई ज़रूरत नहीं है हमें…वे तब भी ये कह रहे थे जब तय माना जा रहा था कमलनाथ का भाजपा में जाना…तो क्या भाजपा ने अपनी पार्टी के अंदर से उठ रहे विरोध के स्वरों को तवज्जो दी और गेट नहीं खोले..? भाजपा कोई भी नए सदस्य के स्वागत में अपना नफ़ा नुकसान सबसे पहले देखती है…उसे यदि दिख गया कि नुकसान की तुलना में नफा ज्यादा है तो वो घर से भी बुलाकर ले आती है और यदि लगा कि नफा कुछ होने से रहा तो वो ख़ुद को सिकोड़ लेती है…इस मामले में हालांकि अभी स्पष्ट नहीं है कि कमलनाथ की अगली भूमिका अब क्या होगी..?

अब कमलनाथ समर्थकों की भूमिका क्या होगी

बीते तीन दिनों में चाय से ज्यादा जो केतलियाँ गर्म थीं उनका क्या होगा… दूल्हा तैयार भी नहीं था लेकिन जो बाराती अपना लगेज पैक कर बाहर आ गए थे, उनकी भूमिका कांग्रेस में क्या होगी..? सोशल मीडिया में प्रोफाइल चेंज करने से लेकर बाकी भी संकेत में कमलनाथ समर्थकों ने जो इनपुट दिया, उसका क्या पटाक्षेप इसे मान लिया जाए या फिर क्रिकेट मैच की तरह कुछ और अभी आख़िरी के ओवर में होना बाकी है..ये सवाल बड़ा है…सवाल ये भी है कि अब कमलनाथ को लेकर एमपी कांग्रेस और भाजपा दोनों का रवैया आने वाले दिनों में क्या होगा, ये भी देखने वाली बात होगी…कुल मिलाकर ये भी अभी नहीं कहा जा सकता कि इस राजनैतिक प्रहसन का पर्दा स्थाई गिरा है या फिर ये इंटरवल है.