भोपाल, मनोज राठौर। मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी का अभेद किला है। यहां बीजेपी हर बार बीजेपी को जीत मिलती है, तो कांग्रेस को हार का सामना करना पढ़ता है। कांग्रेस के कई दिग्‍गज इस सीट से बढ़े अंतराल से हार चुके हैं। ये सीट बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट है। क्‍यों है भोपाल सीट बीजेपी का अभेद किला, जानने के लिए देखिए ये रिपोर्ट…

भोपाल लोकसभा सीट एमपी में बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित संसदीय क्षेत्र है। यहां पर साल 1989 से बीजेपी जीत रही है। इस सीट को जीतने के लिए कांग्रेस ने हर एक सियासी समीकरण को अजमाया। कई दिग्‍गजों को उतारा। लेकिन सभी दांव फेल साबित हुए। बीजेपी का हर उम्‍मीदवार बढ़े अंतराल से जीता। विधानसभा के सियासी समीकरण के बाद भी कांग्रेस को यहां से हार का सामना करना पढ़ा। पिछले लोकसभा चुनाव में दिग्‍विजय सिंह मैदान में थे। उन्‍हें जीत की उम्‍मीद थी। बीजेपी की तरह से उम्‍मीदवार प्रज्ञा ठाकुर ने दिग्‍विजय सिंह को हारा दिया। इस सीट पर प्रज्ञा ठाकुर के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी प्रचार-प्रसार किया था। मध्य प्रदेश में 29 लोकसभा सीट में से बीजेपी के पास 28 सीटें हैं। जबकि कांग्रेस के पास छिंदवाड़ा की एक मात्र सीट है। 29 सीटों में भोपाल बीजेपी के लिए सबसे सेफ सीट है।

भोपाल लोकसभा सीट
-2019 में 14,08,669 वोट डले
-बीजेपी प्रत्‍याशी प्रज्ञा ठाकुर को 8,66,482 वोट मिले
-कांग्रेस प्रत्‍याशी दिग्‍विजय सिंह को 5,01,660 वोट मिले
-प्रज्ञा ठाकुर 3,64,822 मतों से जीती थी
-इस सीट पर साल 1989 से बीजेपी का कब्जा

भोपाल में पिछले चुनाव में माहौल बनाते हुए वोटों का ध्रुवीकरण किया गया था। इसका असर प्रदेश ही नहीं, बल्‍कि देशभर में देखने को मिला। इस बार के चुनाव पर प्रदेश बीजेपी प्रवक्‍ता बृज गोपाल लोया ने कहा कि हिंदुत्‍व हमारे लिए चुनाव का मुद्दा नहीं है। हिंदू हमारा चरित्र और विचारधारा है। यहां पर चुनाव गरीब कल्‍याण और भोपाल के विकास पर लड़ा जाता है। विकास के मामले में भोपाल की तस्‍वीर बदली है। इस बार भी विकास के नाम पर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे।

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह को हराया था। यहां बीजेपी को 61.54 प्रतिशत और कांग्रेस को 35.63 प्रतिशत वोट मिले थे।

इस सीट पर साल 1989 से बीजेपी का कब्जा चला आ रहा है। 1952 से 1989 के बीच यह सीट एक बार भारतीय जन संघ और एक बार जनता दल के खाते में आई। इसके बाद 1989 से इस सीट पर बीजेपी काबिज है। कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्‍गजों को यहां से हार का सामना करना पड़ा।भोपाल संसीदय क्षेत्र में आठ विधानसभा बैरसिया, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा, हुजूर और सीहोर आती है।

भोपाल लोकसभा सीट का इतिहास

-भोपाल लोकसभा सीट का गठन 1952 में हुआ
-1952 में पहली बार कांग्रेस के सईदउल्ला रज्मी यहां से सांसद बने थे
-1957-1962 तक मैमूना सुल्तान सांसद रहे थे
-1967 में भारतीय जन संघ के जगन्नाथराव जोशी जीते
-1971 में कांग्रेस के शंकरदयाल शर्मा सांसद बने
-1977 में जनता दल से आरिफ बेग को जीत मिली
-1980 से कांग्रेस के शंकरदयाल शर्मा जीते
-1984 में कांग्रेस के केएन पठान सांसद बने
-1989 से 1998 तक बीजेपी के सुशीलचंद्र वर्मा सांसद रहे
-1999 में बीजेपी से उमा भारती सांसद चुनी गई
-2004 से 2009 में बीजेपी से कैलाश जोशी सांसद रहे
-2014 में बीजेपी से आलोक संजर को जीत मिली

एमपी की राजधानी भोपाल सीट से बीजेपी ने अपना प्रत्‍याशी आलोक शर्मा को बनाया है। आलोक शर्मा हिंदूवादी छवि के हैं। उनके कई बयान विवादों में भी रहे हैं। इस सीट को लेकर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्‍यक्ष जेपी धनोपिया का कहना है कि कट्टर हिंदूवादी छवि होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जनता सब समझती है। दो बार विधानसभा का चुनाव आलोक शर्मा हार चुके हैं। अब उन्‍हें लोकसभा चुनाव में हार मिलेगी।

इस सीट पर राष्‍ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया। स्‍थानीय मुद्दों की गूंज कम सुनाई देती है। सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को भी इस सीट पर बोलबाला है। 2014 में वोटर्स की संख्या यहां 19,56,936 थी। इसमें 9,17,932 महिला मतदाता और 10,39,004 पुरूष मतदाता थे। जबकि 2019 के चुनाव में आबादी में इजाफा हुआ।

भोपाल सीट की जनसंख्या 26,79,574

-23.71 फीसदी ग्रामीण आबादी
-76.29 फीसदी शहरी आबादी
-15.38 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति
– 2.79 फीसदी अनुसूचित जनजाति
-सबसे ज्‍यादा ओबीसी जनसंख्‍या

भोपाल सीट पर इस बार भी राष्‍ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है। राम मंदिर, धारा 370, ट्रिपल तलाक समेत कई राष्‍ट्रीय मुद्दों की गूंज सुनाई दे रही है। बीजेपी के सीनियर लीडर गोविंद मालू का कहना है कि भोपाल सीट समेत प्रदेशभर की सभी सीटों पर मोदी जी नेतृत्‍व में चुनाव लड़ा जा रहा है। केंद्र और राज्‍य सरकार की उपलब्‍धियों की वजह से जनता फिर बीजेपी को प्रचंड बहुमत से जिताएगी।

भोपाल संसदीय सीट में आने वाली बैरसिया विधानसभा सीट पर ओबीसी और एससी वोट बैंक सबसे ज्‍यादा है। यहां करीब 38 प्रतिशत ओबीसी और 22 फीसदी एससी वोटर हैं। सामान्य वर्ग के साढ़े 27 फीसदी मतदाताओं में सबसे ज्यादा राजपूत 10 प्रतिशत हैं। मुस्लिम वोटर करीब साढ़े 9 फीसदी है। वहीं भोपाल उत्तर सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। 35 फीसदी वोटर मुस्लिम हैं। सामान्य और ओबीसी को मिलाकर करीब 54 प्रतिशत मतदाता हैं। एससी के 10 फीसदी वोटर हैं। नरेला विधानसभा सीट पर सामान्य और ओबीसी वोट 68 फीसदी है। इसके अलावा मुस्लिम मतदाता करीब 20 फीसदी हैं। एससी वोटरों की संख्या 11 प्रतिशत है। साथ ही भोपाल दक्षिण पश्चिम सरकारी कर्मचारी बाहुल्य सीट पर है। इस सीट पर 75 प्रतिशत मतदाता सामान्य वर्ग और ओबीसी हैं। 17 फीसदी एससी वोटर हैं। मुस्लिम मतदाता सबसे कम 4 फीसदी है। भोपाल मध्य सीट भी मुस्लिम बाहुल्य है। यहां 45 प्रतिशत मुस्‍लिम वोटर हैं। सामान्य और ओबीसी के कुल वोटर लगभग 43 फीसदी हैं। एससी के 10 फीसदी मतदाता हैं। गोविंदपुरा सीट पर सामान्य और ओबीसी मतदाताओं की संख्या 78 फीसदी है। यहां एससी वोटर 15 और मुस्लिम वोटर 3 फीसदी हैं। हुजूर विधानसभा क्षेत्र में सामान्य और ओबीसी को मिलाकर करीब 73 प्रतिशत वोट हैं। सिंधी समाज करीब 14 और मीना समाज साढ़े 13 प्रतिशत वोटर्स हैं। एससी-एसटी वोट 20 और मुस्लिम वोट करीब 7 फीसदी हैं। सीहोर विधानसभा सीट पर ओबीसी की संख्या 56 प्रतिशत से ज्यादा है। एससी मतदाता 17 फीसदी हैं। सामान्य वर्ग के साढ़े 13 प्रतिशत वोटरों में साढ़े 9 फीसदी ब्राह्मण है। मुस्लिमों का प्रतिशत साढ़े 10 के आसपास है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्‍ता मिथुन अहिरवार का कहना है कि इस सीट पर हार की वजह की समीझा की गई है। नये समीकरण के साथ चुनाव लड़ा जा रहा है। पिछली हार के कारणों का भी ध्‍यान रखा जा रहा है।

भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी का अभेद किला बन गया है। सभी चुनावी रणनीति यहां पर कांग्रेस की फेल होती साबित हो रही है। अब 2024 पर सबकी नजर है। मुकाबला फिर एक तरफ बताया जा रहा। लेकिन ये चुनाव है और जनता जर्नादन तय करेगी कि वो किसे भोपाल सीट की कुर्सी देगी।