भोपाल | मध्‍यप्रदेश में लोकसभा चुनाव का रण तैयार है। सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इस बार भी पार्टियां टिकट वितरण में यूथ कार्ड का फॉर्मूला अपनायेगी। सबसे ज्‍यादा यूथ को मौका दिया जायेगा। ये पहली बार नहीं, बल्‍कि हर चुनाव में इसी पेर्टन पर टिकट दिए जाते हैं।

वैसे तो लोकसभा का चुनाव लड़ने की उम्र 25 साल है। इस उम्र के चुनाव लड़ने वाले उम्‍मीदवारों की संख्‍या कम रहती है। एक आंकड़े के अनुसार 25 से 26 साल की उम्र तक चुनाव लड़ने वालों की संख्या मध्य प्रदेश में 10 भी नहीं रहती। सबसे अधिक 36 से 45 वर्ष की उम्र के उम्मीदवार प्रदेश में चुनाव लड़ते हैं। साल 2014 और 2019 के चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्‍मीदवारों के उम्रवार विश्लेषण में कई चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आये।प्रदेश बीजेपी प्रवक्‍ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि बीजेपी में योग्‍यता और परिस्‍थितियों के हिसाब से मौका दिया जाता है। बीजेपी के लिए नाम कमल, पहचान कमल और निशान कमल ही सबकुछ है। उन्‍होंने कहा कि उम्‍मीदवारों के चयन में उम्र जैसा कोई फैक्‍टर नहीं होता।

2014 और 2019 के चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्‍मीदवारों की उम्र का विश्‍लेषण में यूथ सबसे आगे रहा। बीजेपी और कांग्रेस ने हर बार युवा चेहरों पर ही दांव खेला। इस चुनाव में भी यूथ कार्ड के इसी फॉमूले को सभी पार्टियां अपना सकती है। प्रदेश कांग्रेस मीडिया सेल के अध्‍यक्ष केके मिश्रा ने कहा कि पार्टी जो भी जिम्‍मेदारी तय करती है, उसी हिसाब से कार्यकर्ता काम करता है। किसे टिकट मिलेगा, किसे नहीं मिलेगा। ये सब पार्टी का नेतृत्‍व तय करती।लोकसभा चुनाव में उम्र के सियासी समीकरण को भी समझा जाता है। इसी समीकरण में अनुभव और जनता के बीच छवि को भी देखा जाता। इस चुनाव में भी कुछ ऐसी ही तस्‍वीर संभावित नामों के आधार पर सामने आ रही है।