चित्रकूट, सतना । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पावन कर्मस्थली पवित्र नगरी चित्रकूट धाम हिंदू धर्मावलंबियों का पावन पवित्र तीर्थ स्थल है। चित्रकूट धाम का उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथों,वेद पुराणों,रामायण,श्री राम चरित मानस इत्यादि में विषद रूप से मिलता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज श्री राम चरित मानस में लिखते हैं कि
चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहीं तुलसी अभिमत देत।।
अर्थात भगवान श्री राम माता जानकी और भाई लक्ष्मण जी सहित चित्रकूट में सदैव निवास करते हैं।
महाकवि रहीम दास जी चित्रकूट धाम की बड़ाई करते हुए कहते हैं कि
चित्रकूट में रमी रहे रहिमन अवध नरेश।
जापर बिपदा परत है सो आवत यही देश।।
अर्थात चित्रकूट में श्री राम रमते – रहते हैं, इसलिए जिस पर भी बिपदा अर्थात विपत्ति आती है वो चित्रकूट आता है। ऐसी चित्रकूट धाम की महिमा है।
त्रेता युग में जिस समय अयोध्या जी मे महाराज श्री दशरथ ने भगवान श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास दे दिया। भगवान श्री राम माता जानकी और भाई लक्ष्मण जी के साथ वनों में भ्रमण कर रहे थे, तभी जंगल में महर्षि बाल्मीकि जी महाराज का आश्रम देखकर भगवान श्री राम माता जानकी और भाई लक्ष्मण जी के साथ महर्षि बाल्मीकि जी महाराज से मिलते हैं।
उन्हें अपने वनवास आने की कथा बताते हुए उनसे वन में रहने लायक स्थान को बताने की प्रार्थना करते हैं। भगवान श्री राम की वाणी सुनकर महर्षि बाल्मीकि जी कहते हैं कि हे राम ,आप मुझसे स्थान पूछ रहे हैं। आप कहां नही हैं। आपका वास तो कण कण में व्याप्त है। लेकिन फिर भी आप मुझे बड़ाई देना ही चाहते हैं,तो आपके रहने लायक चित्रकूट सर्वोत्तम स्थान है।
श्री राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
चित्रकूट गिरी करहू निवासू।
जह तुम्हार सब भांति सुपासु।।
अर्थात हे राम आप चित्रकूट गिरी (पर्वत) में जाकर निवास करें। वहां हर प्रकार से आपका सुपास अर्थात कल्याण होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चौदह वर्षों का वनवास मिलने के बाद चित्रकूट में पर्णकुटी अर्थात पत्तों की कुटिया बनाकर निवास करने लगे ।
यहीं पर राम चरित मानस की रचना करने वाले गोस्वामी तुलसीदास को भी मंदाकिनी के रामघाट में भगवान के दर्शन हुए थे। भगवान का दर्शन प्राप्त करने के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने काशी, वृंदावन इत्यादि जगहों पर भ्रमण किया लेकिन उन्हें भगवान के दर्शन प्राप्त नहीं हुए।
हनुमान जी द्वारा तुलसी दास को स्वप्न देकर कहा गया कि आप चित्रकूट में जाकर निवास करते हुए नित्य मंदाकिनी के घाट पर बैठकर चंदन घिंसे। भगवान स्वयं आकर आपका चंदन स्वीकार करेंगे। इसके बाद तुलसी दास जी मंदाकिनी के घाट पर नित्य प्रति बैठकर चंदन घिसते हुए भगवान का इंतजार करने लगे ।
कई बार भगवान आते और तुलसी दास जी महाराज द्वारा घिसे चंदन को लगाकर वापस लौट जाते। लेकिन तुलसी दास भगवान को पहचान नहीं पा रहे थे। एक दिन भगवान चंदन लगाने के लिए युवक का भेष धारण करके आए और चंदन लगाकर वापस जाने लगे। हनुमान जी महाराज ने सोचा कि ऐसे तो तुलसी दास जी महाराज कभी भी भगवान को पहचान नहीं पाएंगे। तब हनुमान जी महाराज ने तोते का आकार धरते हुए इस दोहे का उच्चारण किया कि
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसी दास चंदन घिसे तिलक देत रघुबीर
दोहा सुनते ही तुलसी दास जी महाराज प्रभु के चरणों गिर पड़े और उन्हें भगवान के दर्शन प्राप्त हुए।