पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।-
ये वो दोहा है जिसे सुनते ही लोगों के जहन में एक नाम आता है। ये नाम है संत कबीरदास (Kabir Das Jayanti)…. ऐसे न जाने कितने और दोहों और अपनी रचनाओं से लोगों को प्रेरणा देने वाले संत कबीरदास जी न सिर्फ एक कवि, बल्कि समाज सुधारक भी थे। भक्ति आंदोलन पर भी कबीरदास जी के लेखन का काफी प्रभाव पड़ा था। आइए जानते हैं कबीर दास जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से हुआ जन्म
कबीरदास जी के जन्म को लेकर मान्यता है कि कबीर दास जी (Kabir Das Jayanti) ने रामानंद गुरु के आशीर्वाद से एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से सन 1398 में वाराणसी में जन्म लिया था। हालांकि समाज के भय से उन्होंने कबीर को काशी के पास लहरतारा नाम के ताल के पास छोड़ दिया था, जिसके बाद एक जुलाहे ने उनका पालन पोषण किया। कबीर दास जी देशाटन करते थे और सदैव साधु-संतों की संगति में रहते थे।
एक ही ईश्वर को मानते थे कबीर दास
कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। वो एक ही ईश्वर को मानते थे। वो अंध विश्वास, धर्म और पूजा के नाम पर होने वाले आडंबरों के भी विरोधी थे। कबीर दास जी (Kabir Das Jayanti) ने अपने दोहों में जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र भी बताए हैं। व्यक्ति अगर इन सूत्रों को जीवन में उतार ले तो उसकी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
धर्मों में फैली कुरीतियों के विरोधी
कबीर दास जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया। मृत्यु के बाद भी हिंदू और मुस्लिम धर्म में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने का प्रयास किया। उन्होंने अपने जीवन काल में हिन्दू और मुस्लिम को एकता में पिरोने का काम किया। वो दोनों ही धर्मों में फैली कुरीतियों के सख्त विरोधी थे। इसको लेकर उन्होंने दोहों की रचना भी की।
दुनिया बड़ी बावरी, पहार पूजन जाए।
घर की चक्की कोई न पूजे, जिसका पीसा खाए।
कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।
अंधविश्वास के खिलाफ
कबीरादस जी अंधविश्वास के सख्त खिलाफ थे। एक अंधविश्वास था कि जिसकी मृत्यु काशी में होगी वो स्वर्ग जाएगा और मगहर में होगी वो नर्क में जाएगा। इसी भ्रम को तोड़ने के लिए कबीरदास जी ने अपना जीवन काशी में गुजारा, जबकि प्राण मगहर में त्यागे थे।
मिश्रित व्यक्तिगत भक्तिवाद से प्रभावित
कबीर दास को अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्धि मिली। संत कबीर उस समय के प्रचलित धार्मिक मिजाज जैसे हिंदू धर्म, तंत्रवाद के साथ-साथ इस्लाम के निराकार ईश्वर से मिश्रित व्यक्तिगत भक्तिवाद से भी प्रभावित थे।
सार्वभौमिक मार्ग देने वाले पहले भारतीय संत
कबीर दास पहले भारतीय संत हैं जिन्होंने हिंदू और इस्लाम धर्म में समन्वय स्थापित करते हुए एक सार्वभौमिक मार्ग दिया जिसका अनुसरण हिंदू और मुसलमान दोनों कर सकते हैं।
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अनपढ़ होने के बावजूद लिखीं कविताएं
कबीरदास जी ने एक संक्षिप्त और सरल शैली में कविताएँ लिखीं, जो वास्तविक गुरु की प्रशंसा को प्रतिध्वनित करती हैं। अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने अवधी, ब्रज और भोजपुरी के साथ हिंदी में अपनी कविताएँ लिखीं। कविताओं को दोहे, श्लोक और साखी जैसे नामों से पुकारा जाता है। इसके साथ ही कबीरदास जी ने लोगों को मनुष्य का धर्म क्या होना चाहिए, इस बारे में प्रामाणिक जानकारी दी है। इससे आम लोगों को उनके संदेश को समझने में आसानी हुई है।