भोपाल। भारतीय संस्कृति में रंगों का त्योहार होली अपने आप में एक विशेष स्थान रखता है, और इसकी शुरुआत रंगभरी एकादशी से होती है। इस वर्ष रंगभरी एकादशी 20 मार्च को मनाई जाएगी, जो होली से पहले पड़ने वाली एकादशी है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है, और यह दिन विशेष रूप से उनके विवाह के बाद पहली बार काशी आगमन की याद दिलाता है।

आंवले की पूजा और उसके लाभ

इस अवसर पर, आंवले के पेड़ की भी उपासना की जाती है, जिसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। आंवले का विशेष तरीके से पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भक्तगण सवेरे-सवेरे आंवले के वृक्ष में जल चढ़ाते हैं, पुष्प, धूप, नैवेद्य अर्पित करते हैं और वृक्ष की परिक्रमा करते हैं।

चमत्कारी उपाय और उनके फायदे

इस दिन के चमत्कारी उपायों में शिव मंदिर में जल, अबीर, गुलाल, चंदन और बेलपत्र अर्पित करना शामिल है, जिससे आर्थिक समस्याओं का निवारण होता है। विवाह संबंधी बाधाओं से मुक्ति के लिए भी इस दिन विशेष पूजा की जाती है।

वाराणसी में रंगों का जश्न

वाराणसी में रंगभरी एकादशी के दिन से ही रंग खेलने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो छह दिन तक चलता है। इस त्योहार की शुरुआत ब्रज में होलाष्टक से होती है, जबकि वाराणसी में रंगभरी एकादशी से।

तिथि और व्रत का महत्व

इस वर्ष फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी तिथि की शुरुआत 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से होगी और 21 मार्च को रात 2 बजकर 22 मिनट पर समापन होगा। उदया तिथि के अनुसार, आमलकी एकादशी का व्रत 20 मार्च, बुधवार को रखा जाएगा।

इस प्रकार, रंगभरी एकादशी न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह उत्सव और आनंद का भी अवसर प्रदान करती है, जो हमें जीवन के रंगों का जश्न मनाने की प्रेरणा देती है।