धार। बसंत पंचमी (Basant Panchmi), मां वीणावादिनी के पूजन का दिन, इस दिन मंदिरों में विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है। मध्यप्रयदेश में ऐसे अनेक स्थान हैं जहां मां सरस्वती के विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है। आज हम आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे राजा भोज ने 1034 ईस्वी में बनवाया था। इसे भोजशाला के नाम से जाना जाता है। यहां वाग्देवी की सुंदर प्रतिमा स्थापित की गई थी। आज भी यहां बसंत पंचमी पर वाग्देवी की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
क्या कहते हैं इतिहासकार
मंदिर के बारे में बताया जाता है कि राजा भोज मां सरस्वती के भक्त थे, जिसकी वजह से ही उन्होंने यहां एक पाठशाला का निर्माण कराया और यहां मां वाग्देवी की प्रतिमा की स्थापना की, बताया जाता है कि यहां बच्चे ज्ञान अर्जित करने भी आया करते थे। इतिहासकारों के अनुसार 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था और बाद में दिलावर खां गौरी ने 1401 ईस्वी में भोजशाला के एक भाग में मस्जिद बनवा दी थी। 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने शेष भाग पर भी मस्जिद बनवा दी थी। इसके बाद से भोजशाला की मुक्ति को लेकर हिन्दू समाज लगातार आंदोलन करता रहा।
हर साल वसंत पंचमी पर विवादों का केंद्र बन जाती है। हिंदू इसे भोजशाला मानते हैं, जबकि मुस्लिम इसे मस्जिद मानते हैं। विवाद आजादी के बाद लगातार तेज होता गया है और आज भी यहां पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच पूजा का आयोजन किया जाता है।
सूर्योदय के साथ ही शुरू हुआ पूजा का दौर
धार की प्राचीन धरोहर राजा भोज कालीन संस्कृत महाविद्यालय माने जाने वाली भोजशाला में बसंत पंचमी पर्व पर बुधवार को सूर्योदय के साथ ही दर्शन-पूजन एवं हवन का दौर शुरू हो गया, जो सूर्यास्त तक चलेगा। इसके साथ ही बुधवार से चार दिवसीय बसंत महोत्सव का भी शुभारंभ हो गया है। इसी कड़ी में धार का गौरव दिवस भी मनाया जा रहा है।
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