जबलपुर। जनवरी को रामलला अपने घर विराजे हैं…जिसको लेकर अयोध्या के साथ-साथ पूरे देश में खुशी का माहौल है…तो वहीं 14 वर्ष के वनवास के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मध्य प्रदेश के आने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है जो सभी को मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर ले जाती है यहां खुद भगवान श्री राम ने अपने हाथों से रामेश्वरम की ओपनिंग कहे जाने वाले गुप्तेश्वर महादेव की स्थापना की थी…क्या है इस मंदिर की कहानी,  देखें ये खास रिपोर्ट…

जबाली ऋषि की तपोभूमि कहे जाने वाले संस्कारधानी जबलपुर का इतिहास कई मान्यताओं और पौराणिक कथाओ के लिए प्रचलित है। ये शहर का सौभाग्य है कि मॉ नर्मदा ने शहर को अपना रास्ता बनाया जिससे पूरा क्षेत्र धार्मिक दृष्टि के साथ साथ भौगोलिक रूप से भी खासा परिपूर्ण है। अगर इतिहास की बात की जाए तो खुद मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के जबलपुर आने का उल्लेख धर्म  शास्त्रों में मिलता है। ये इतिहास जुड़ा है जबलपुर के गुप्तेश्वर स्थित रामेश्वरम के उपलिंग कहे जाने वाले गुप्तेश्वर महादेव मंदिर से।

मध्य प्रदेश के जबलपुर में भी भगवान राम के आने के साक्ष्य मिलते हैं। कहा जाता है कि भगवान राम यहां जाबाली ऋषि से मिलने पहुंचे थे। वनवास काल के दौरान भगवान राम जहां भी रूका करते थे वहां के ऋषियों से मिलने के लिए जाया करते थे। जाबालि ऋषि और भगवान राम की मुलाकात को लेकर कहा जाता है कि एक सभा में जाबाली ऋषि ने भगवान राम को संभाषण में बीच में बोलने से रोक दिया था, जिस पर भगवान राम ने जाबालि ऋषि को समझाया कि किसी को बीच में बोलते समय रोकना ठीक नहीं है। इस बात पर जाबाली ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे सभा बीच में ही छोड़कर पश्चाताप करने के लिए जबलपुर के लिए रवाना हो गए।

 

रेत के शिवलिंग  बनाकर भगवान शिव की आराधना की थी

सभा समाप्त होने के बाद भगवान राम ने जाबाली ऋषि से मिलने का सोचा लेकिन तब तक वे जा चुके थे। तब भगवान राम ने अपनी दिव्य दृष्टि से जाबाली ऋषि को देखा, तो पाया कि वे जबलपुर में हैं, उनसे मिलने के लिए भगवान राम जबलपुर आए लेकिन तब तक जाबालि ऋषि अपनी गलती के लिए पश्चाताप करने समाधि लगा चुके थे। तब भगवान राम ने जबलपुर में ही एक गुफा में रूककर रेत के शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की आराधना की थी, जिस जगह पर भगवान राम ने शिव जी की पूजा की थी, वर्तमान में उस जगह को गुप्तेश्वर के नाम से जाना जाता है। वहीं, जबलपुर को लेकर एक बात ये भी कही जाती है कि वर्तमान का महाकौशल ही त्रेतायुग का कौशल क्षेत्र है, जो कि भगवान की माता कौशल्या का पीहर है।

मंदिर पहुंचने वाले भक्त भी रामलीला की स्थापना को लेकर बेहद उत्साहित है। गुप्तेश्वर महादेव मंदिर से उनकी आस्था सालों से जुड़ी हुई है और माना जाता है कि गुप्त रूप से जो भी मनोकामना भगवान भोलेनाथ से की जाती है वह इसे पूर्ण करते हैं । कहने को रामेश्वरम की ओपनिंग के रूप में गुप्तेश्वर महादेव की पूजा अर्चना होती है विशेष रूप से जब रामलला की स्थापना उनकी जन्मस्थली पर होने जा रही है ऐसे में मंदिर का प्राचीन और पौराणिक इतिहास एक बार फिर जीवंत हो चलता है।

22 जनवरी को अयोध्या में जहां भगवान श्री राम के स्थापना को लेकर भव्य आयोजन होगा तो वही मंदिर में भी देव दीपावली सा महौल बनाया जाएगा।  मंदिर के अन्य पुजारी बताते हैं कि मंदिर को दीपों से सजाया जाएगा इसके साथ ही साथ भगवान रामलीला के रामराज्य की स्थापना का भव्य स्वरूप मंदिर में देखने को मिलेगा।

भगवान राम के ईष्ठ भगवान शिव कहे जाते  हैं और मॉ नर्मदा शिवपुत्री … आज जिस स्थान पर रामेश्वरम के उपलिंग स्वरूप पूजनीय  गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है वहॉ एक निर्मल धारा मॉ नर्मदा की  थी…गुफा रूपी इस पर स्वयं भगवान राम ने शिवलिंग बनाकर करीब 1 माह तक अभिषेक किया। तद उपरांत वे यात्रा के लिए आगे बढ़े थे। इस लिहाज से ये माना जाता है कि भगवान राम जबलपुर संस्कारधानी आए थे । इसका प्रमाण शिवपुराण के कोटि रूद्र संहिता के पहले अध्याय के 37वें और 42वें श्लोक मे साफ रूप से मिलता है। वही रामचरितमानस और विशिष्ट रामायण मे भी इसका उल्लेख पाया जाता है।

 -मुकुंददास महाराज महंत गुप्तेश्वर महादेव मंदिर

 

मुख्य बिंदु

-भगवान शिव का धाम गुप्तेश्वर महादेव

-1900 साल पहले इस प्राचीन मंदिर में होती थी गुप्त पूजा

-गजब की है यहां की मान्यता

-आज भी गुप्त है गुप्तेश्वर मंदिर का रहस्य