मनेंद्रगढ, मनोज श्रीवास्तव। छत्तीसगढ़ राज्य का नवीन जिला मनेंद्रगढ चिरमिरी भरतपुर जो कि प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ दैविक शक्ति पीठों के लिए भी जाना जाता है यहां पर माता रानी के ऐसे शक्तिपीठ हैं जो आज भी विज्ञान के लिए रहस्यमय बने हुए हैं जिनमें से एक प्राचीन गढ़ा दाई का मंदिर भी है जो कि अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है, जहां लोगों में इस मंदिर को लेकर अपनी एक अलग ही आस्था बनी हुयी है जो दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।

जी जहां हम बात कर रहे हैं दुरुस्त वनांचल क्षेत्र मनेंद्रगढ चिरमिरी भरतपुर जिले के कहे जाने वाले भरतपुर जनकपुर से महज 45 किलोमीटर दूर बसे तितौली ग्राम के एक पहाड़ की जहां ऊंचाई पर माता आदिशक्ति स्वरूप मां गढ़ा दाई का मंदिर है। इस मंदिर में लोग बड़ी दूर दराज से बड़े श्रद्धा भाव के साथ अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और मां गढ़ा दाई उनकी सारी इच्छाएं भी पूरी करती हैं।

कहते हैं कि जो इस गढ़ा दाई माता रानी से सच्चे दिल से अपनी मुराद मांगा करता है, माता रानी उसकी सारी मन्नत पूरी करती हैं। बात करें सीमावर्ती राज्यों की तो शहडोल के मध्य प्रदेश से इसकी दूरी मात्र 60 किलोमीटर है इसके बगल से ही मध्यप्रदेश राज्य भी कुछ किलोमीटर की दूरी से शुरू हो जाता है। पहाड़ी के ऊपर बने इस मंदिर में आज भी प्राचीन काल के ढोल नगाड़े पत्थर के रूप में स्थापित हैं। समय बताते हैं कि जब भी गांव में कोई अनहोनी होने की संभावनाएं होती हैं तो माता रानी समय-समय पर ग्राम वासियों को मंदिर के पुजारी अर्थात पांडा के माध्यम या और भी अन्य किसी माध्यम से अवगत करा देती हैं।

बिना मूर्ति की होती है मंदिर में पूजा

देखने वाली बात तो यह है कि इस मंदिर में ऐसा शक्तिपीठ है जहां पर शक्ति स्वरूपा मां गढ़ा दाई हैं लेकिन यहां उनकी कोई मूरत नहीं है या कहा जाए कि इस मंदिर में कोई मूर्ति ही नहीं है। लोग यहां पर पहाड़ की पूजा करते हैं यहां माता का चमत्कार ही है जहां लोग बिना मूर्ति के इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं और सच्चे मन से अपनी आस्था भी इस मंदिर के लिए रखते हैं जिसमें आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त यहां पर सच्चे दिल से माता रानी से अपनी मुरादे मांगता है, माता रानी उसकी इच्छा जल्द ही पूरी कर देती हैं।

गेरुआ रंग से कंपन होने लगती है पूरी पहाड़ी

लगभग पांच सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर बसा प्राचीन मां गढ़ा दाई का यह जो शक्तिपीठ मंदिर है जो कि यहां आने वाले भक्तों के लिए उनके आस्था का केंद्र तो है ही लेकिन यहां पर एक विचित्र बात यह उठती है कि जब भी यहां पर गेरूआ रंग का साया भी पड़ता है तो यह पहाड़ी कांप उठती है या इसे यह भी कह सकते हैं कि पूरी पहाड़ी पर कंपन होने लगता है। यहां के लोगों का कहना है कि आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व सबसे पहले इस मंदिर में वन विभाग के फॉरेस्टर भागवत पांडे के द्वारा मंदिर में आने जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कार्य पत्थरों को कटवा कर कराया जा रहा था। सीढ़ी का कार्य पूर्ण होने के बाद जब काम करने वाले लोगों ने मंदिर की लिपाई पुताई में गेरूआ रंग का उपयोग कर पुताई का कार्य चालू किया तभी माता रानी के इस पूरे पहाड़ में कंपन होने लगा, जिसे देखकर काम करने वाले वहां से डर के भाग गए। इसके बाद मंदिर में माता के भक्ति के रूप में जो पुजारी थे उनके ऊपर सवारी आई और माता ने सवारी के माध्यम से यह बताया कि इस मंदिर को कभी भी गेरूआ रंग से ना पोताई कराए, तब से इस मंदिर में गेरूआ रंग से पुताई के कार्यों पर पाबंदी लग गई और आज तक कभी भी इस मंदिर में इस रंग का उपयोग नहीं हुआ।