प्रवीण दुबे

एडिटर इन चीफ BSTV 

एमपी में दो बड़े राजनैतिक दल ही कद, ओहदे, रुतबे से पहचाने जाते हैं कांग्रेस और भाजपा..विधानसभा चुनावों में बम्फर जीत की मार्कशीट लेने के बाद बहुत कुछ अप्रत्याशित करने के बाद भी भाजपा में कोई उथल-पुथल नहीं है…गहरी नदी की तरह उसकी सतह भी शांत और अंदर भी लहरों का आवेग वैसा नहीं है जैसा मुख्यमंत्री बदलने के और उसके बाद मंत्रिमंडल के फैसलों के बाद होना था..सरकार को सफल बनाने के लिए उनकी पितृ संस्थाएं एडी-चोटी का ज़ोर लगाने में लगी है..तीन और चार फरवरी को दो दिवसीय प्रबोधन उनका चल रहा है.. पिछली सरकार की तुलना में एमपी में इस सरकार में बदलाव तो बहुत देखने मिल रहा  है…पिछली सरकार में सत्ता केंद्रीयकृत थी..इस सरकार में विकेन्द्रित है….पिछली सरकार में चंद लोगों को अहम् ब्रह्मास्मि का भाव था, तो इस सरकार में हम ही हम हैं तो क्या हम हैं…तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो का भाव है.

संघ परिवार का थिंक टैंक

सरकार की पाठशाला चल रही है..सरकार के मंत्री सुशासन का पाठ सीख रहे हैं…ये सिखा ने आई है राम भाऊ महालगी प्रबोधिनी संस्थान, जिसे संघ परिवार का थिंक टैंक माना जाता है..ये संस्था लीडरशिप,पौलिटिक्स और गवर्नेंस पर पाठ्यक्रम भी चलाती है.. यहाँ कई तरह की संगोष्ठियाँ भी होती हैं..मैंने इसके बारे में जाना तब इन्होने एक बार कांग्रेस को भी आमंत्रण दिया था..देवेन्द्र फडनवीस, विनय सहस्त्रबुद्धे जैसे नेता भी यहाँ से सम्बद्ध रहे हैं…खैर…इस प्रबोधन, प्रशिक्षण या जो भी इसका नाम हो इसकी ज़रूरत क्यूँ पड़ी….वजह जो मोटी मोटी समझ में आती है वो ये कि भाजपा और संघ दोनों मौजूदा मोहन सरकार को लेकर संवेदी बहुत हैं…वो किसी भी सूरत में नहीं चाहते कि किसी भी तरह का कोई विवाद उपजे और उसके छींटे उनके दामन में इस शक्ल में आयें कि आख़िर चयन तो उनका ही था…यही कारण है कि मंत्रियों को हाउ टू बिहेव सिखाया जा रहा है …उनके बजट खर्च करने के तरीके पर चर्चा होगी..उनके स्टाफ के आचरण पर भी दिशा निर्देश होंगे…ऐसे प्रशिक्षण का फायदा कितना होगा…? इसे परामर्श के तौर पर देखा जाए या नियंत्रण के तौर पर..? क्या ये सब कार्यक्रम कोई संदेश भाजपा की उस टीम के लिए भी देना चाहते हैं जिनकी हिलोरें इतने दिनों के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं…क्या एमपी आचरण के लिहाज़ से  फिर संघ की वैसी ही प्रयोगशाला बन रहा है जैसा ठाकरे जी,पटवा जी के वक्त कभी होता था…बहुतेरे हैं सवाल लेकिन जवाब केवल एक कि भाजपा हर हाल में जीत के लिए आक्रामक है…

 

भोपाल से दिल्ली तक उधेड़बुन जैसा माहौल

राम मंदिर की भावनाएं भी तो कैश होंगी यूँ भी जनवरी के महीने में अयोध्या में राम लला के विराज जाने से जो करोड़ों हिन्दू हैं, उनका भाव भाजपा के लिए शुक्रिया का तो है ही…भले ही वे संघ और भाजपा समर्थित न हों लेकिन अपने आराध्य का उपयुक्त स्थान पर बैठे देखना श्रेय तो भाजपा के खाते में ही दे रहा है…भाजपा चाहे तो इसी एक बात पर वो अपनी वोटों की फसल लहलहा सकती है लेकिन उसने हार नहीं मानी और वो सामूहिक प्रयास की तरफ ध्यान दे रही है…विकास की घोषणाएं हो रही हैं..उनका समुचित प्रचार हो रहा है…जातिगत और इलाकाई संतुलन भी साधे जा रहे हैं जो चुनाव में कई बार बहुत निर्णायक भूमिका अदा करते हैं.. कांग्रेस के प्रयास देखें ज़रा इस तुलना में कांग्रेस को देखें तो भोपाल से दिल्ली तक उधेड़बुन जैसा माहौल है..राहुल गांधी की यात्रा कोई प्रभाव विधानसभा चुनावों में भी नहीं छोड़ पाई तो भला अब क्या होगा ये सवाल उतना ही बड़ा है जितना ये कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में ज्यादा लोकप्रिय कौन है…?

 

आख़िर क्या होगा पार्टी का भविष्य ?

प्रदेश कांग्रेस की बात करें तो जिन नामों से कांग्रेस एमपी में पहचानी जाती थी,वे सभी एक तरह से किनारे हैं…हार के बाद कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हट गए…दिग्विजय सिंह के घर को आग उनके ही घर के चिराग यानी भाई लक्षमण सिंह ही सार्वजनिक बयानबाज़ी कर करके लगा रहे हैं..कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों लोकसभा चुनाव लड़ने की अनिच्छा जता चुके हैं…प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जब विधानसभा चुनाव ही हार गए तो लोकसभा में क्या ही क़माल कर पाएंगे.. एक नाम और विंध्य की सियासत में बड़ा है अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह का…वो भी कह रहे हैं कि वे लोकसभा कतई नहीं लड़ेंगे…देश में इंडिया गठबंधन भी कांग्रेस के साथ सबसे कमज़ोर सहयोगी बतौर व्यवहार कर रहा है..उनकी न तो कोई शर्त मानी जा रही है और ना ही उनके प्रस्तावों पर कोई ध्यान दे रहा है…बंगाल में ममता की लाइन अलग है…बिहार में क्या हुआ ये सभी ने देखा ही…उत्तर प्रदेश में अखिलेश सीटों के बंटवारे के नाम पर केक का सबसे छोटा हिस्सा देकर कांग्रेस का मुंह मीठा करा रहे हैं..ऐसे में ये सवाल वाकई बहुत बड़ा और कांग्रेस के लिहाज से फ़िक्र करने लायक हो जाता है कि लोकसभा चुनावों और उसके बाद पार्टी का भविष्य आख़िर क्या होगा